Biography of jyotiba phule in hindi
आज इस आर्टिकल में हम आपको ज्योतिबा फुले की जीवनी – Jyotirao Phule Biography Hindi के बारे में बताएंगे।
ज्योतिबा फुले की जीवनी – Jyotirao Govindrao Phule Biography Hindi
Jyotirao Phule एक महान समाज सुधारक, महान क्रांतिकारी, अच्छे लेखक, भारतीय विचारक, एवं उच्च कोटि के दार्शनिक थे।
स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने 1854 में एक स्कूल खोला।
यह इस काम के लिए देश में पहला विद्यालय था।
ज्योतिबा फुले ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली।
समाजसेवा देखकर 1888 ई.
Magdalene mensah biography of williamमें मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी।
1873 में महात्मा फुले ने ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की थी
और इसी साल उनकी पुस्तक “गुलामगिरी” का प्रकाशन भी हुआ।
जन्म – ज्योतिबा फुले की जीवनी
ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के कटगुण में हुआ था।
उनका पूरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव गोन्हे, ज्योतिराव गोविंदराव फुले था।
उनके पिता का नाम गोविंदराव तथा उनकी माता का नाम चिमणा बाई था।
जब वे 1 साल के हुए तो उनकी माता का देहांत हो गया।
इसके बाद उनका पालन – पोषण सगुनाबाई नामक एक दाई ने किया।
उनका विवाह 1840 में सावित्री बाई फुले से हुया था।
ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले के कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने एक विधवा के बच्चे को गोद लिया था।
यह बच्चा बड़ा होकर एक Doctor बना और इसने भी अपने माता पिता के समाज सेवा के कार्यों को आगे बढ़ाया।
शिक्षा
ज्योतिबा ने कुछ समय पहले तक मराठी में अध्ययन किया।
परंतु लोगों के यह कहने पर कि पढ़ने से तुम्हारा पुत्र किसी काम का नहीं रह जाएगा, पिता गोविंद राम ने उन्हें स्कूल से छुड़ा दिया। जब लोगों ने उन्हें समझाया तो तीव्र बुद्धि के बालक को फिर स्कूल जाने का अवसर मिला और 21 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंग्रेज़ी की सातवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की।
हर्षवर्धन की जीवनी
योगदान – ज्योतिबा फुले की जीवनी
- उनका सबसे पहला और महत्वपूर्ण कार्य महिलाओं की शिक्षा के लिये था; और उनकी पहली अनुयायी खुद उनकी पत्नी थी जो हमेशा अपने सपनों को बाँटती थी तथा पूरे जीवन भर उनका साथ दिया।
- अपनी कल्पनाओं और आकांक्षाओं के एक न्याय संगत और एक समान समाज बनाने के लिये 1848 में ज्योतिबा ने लड़कियों के लिये एक स्कूल खोला; ये देश का पहला लड़कियों के लिये विद्यालय था। उनकी पत्नी सावित्रीबाई वहाँ अध्यापान का कार्य करती थी। लेकिन लड़कियों को शिक्षित करने के प्रयास में, एक उच्च असोचनीय घटना हुई उस समय, ज्योतिबा को अपना घर छोड़ने के लिये मजबूर किया गया। हालाँकि इस तरह के दबाव और धमकियों के बावजूद भी वो अपने लक्ष्य से नहीं भटके और सामाजिक बुराईयों के खिलाफ लड़ते रहे और इसके खिलाफ लोगों में चेतना फैलाते रहे।
- 1851 में उन्होंने बड़ा और बेहतर स्कूल शुरु किया जो बहुत प्रसिद्ध हुआ। वहाँ जाति, धर्म तथा पंथ के आधार पर कोई भेदभाव नहीं था और उसके दरवाजे सभी के लिये खुले थे।
- ज्योतिबा फुले बाल विवाह के खिलाफ थे साथ ही विधवा विवाह के समर्थक भी थे; वे ऐसी महिलाओं से बहुत सहानुभूति रखते थे जो शोषण का शिकार हुई हो या किसी कारणवश परेशान हो इसलिये उन्होंने ऐसी महिलाओं के लिये अपने घर के दरवाजे खुले रखे थे जहाँ उनकी देखभाल हो सके
महात्मा की उपाधि
दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने ‘सत्यशोधक समाज’ स्थापित किया।
उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई.
में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी।
ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली।
वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे। वे लोकमान्य के प्रशंसकों में थे।
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पुस्तक ‘गुलामगिरी’
सन 1873 में महात्मा फुले ने ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की थी और इसी साल उनकी पुस्तक “गुलामगिरी” का प्रकाशन भी हुआ। दोनों ही घटनाओं ने पश्चिमी और दक्षिण भारत के भावी इतिहास और चिंतन को बहुत प्रभावित किया।
महात्मा फुले की किताब ‘गुलामगिरी’ बहुत कम पृष्ठों की एक किताब है, लेकिन इसमें बताये गये विचारों के आधार पर पश्चिमी और दक्षिणी भारत में बहुत सारे आंदोलन चले।
उत्तर प्रदेश में चल रही दलित अस्मिता की लड़ाई के बहुत सारे सूत्र ‘गुलामगिरी’ में ढूंढ़े जा सकते हैं।
आधुनिक भारत महात्मा फुले जैसी क्रांतिकारी विचारक का आभारी है।
मृत्यु – ज्योतिबा फुले की जीवनी
ज्योतिबा फुले की मृत्यु 28 नवंबर 1890 में हुआ।
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